आसान भाषा में समझें, क्या होता है टैक्स कलेक्टेड एट सोर्स (TCS)
26-मई-2023 •रवि बनगेरे
वित्त मंत्रालय ने हाल ही में इंटरनेशनल ख़र्च में कमी लाने के लिए एक साहसी क़दम उठाया है. ऐलान किया गया है कि लिबरलाइज़्ड रेमिटेंस स्कीम (LRS) के तहत क्रेडिट कार्ड के इस्तेमाल से विदेश में जाने वाले धन पर लगने वाला TCS, 5 फ़ीसदी से बढ़ाकर 20 फ़ीसदी किया जा रहा है. ये बदलाव जुलाई 2023 से लागू होगा.
इस घोषणा से कई सवालों की झड़ी लग गई है. इनमें से कुछ सवाल हैं - TCS क्या है, ये TDS (टैक्स डिडक्शन एट सोर्स) से कैसे अलग है, क्या इसका मतलब है कि मैं आखिरकार ज़्यादा टैक्स चुकाऊंगा? आइए इन सवालों पर ग़ौर करते हैं.
TCS क्या है?
TCS एक टैक्स है जो कुछ ख़ास गुड्स या सर्विसेज़ के सेलर्स आप से उनके प्रोडक्ट ख़रीदने या सर्विस पर लेते हैं.
उदाहरण के लिए, भारतीय टैक्स क़ानूनों के हिसाब से, अगर आप ₹10 लाख से ज़्यादा क़ीमत की कार ख़रीदते हैं, तो कार डीलर को आपसे 1 फ़ीसदी TCS वसूलना होगा.
इसी तरह, अगर कार की क़ीमत ₹15 लाख है, तो डीलर TCS के तौर पर आपसे ₹15,000 (₹15 लाख का 1%) अतिरिक्त टैक्स वसूलेगा. इसके बाद डीलर को ये रक़म सरकार के पास जमा करनी होगी.
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TDS क्या है?
TDS वो टैक्स है, जो इम्प्लॉयर या किसी दूसरे भुगतान को करने वाला आपकी इनकम से काटता है. ये इनकम आपकी सैलरी, बैंक डिपॉज़िट का ब्याज, कमीशन की इनकम आदि हो सकती है. ये आपके इम्प्लॉयर, बैंक, या आपको भुगतान करने वालों के द्वारा काट लिया जाता है और इसे भारत सरकार के पास जमा किया जाता है.
TCS, TDS कैसे अलग हैं?
क्या अब मुझे ज़्यादा टैक्स देना होगा?
नहीं. TCS एक और बोझ नहीं है क्योंकि ये आपकी कुल टैक्स देनदारी के साथ ही जमा किया जाता है. अगर आपने अपनी सालाना टैक्स देनदारी से ज़्यादा टैक्स दिया है तो आप रिफ़ंड के लिए क्लेम कर सकते हैं. इसलिए, आपको ज़्यादा चिंता करने की ज़रूरत नहीं है.
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